बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक लालची डाकू रहता था। इस डाकू का नाम गोपाल था और उसका लक्ष्य था कि वह हमेशा सबसे अमीर और सबसे प्रसिद्ध बने।
गोपाल को बचपन से ही लालच से भरा हुआ था। उसने गाँव के बच्चों के साथ खेतों में खेलने के बजाय अपने मन की मर्जी करने का आदान-प्रदान किया। जब भी कोई गाँववाला खेतों में मेहनत करता और अच्छा काम करता, तो उसकी नजरें उस पर डाली जातीं, और वह उससे उसकी कई चीजें चुराता।
गोपाल के दोस्त भी देखकर दंग रह जाते कि यह लालची डाकू किसी के साथ भले ही दोस्ती कर रहा हो, लेकिन उसका असली मकसद हमेशा कुछ पाना और किसी की मेहनत का नतीजा चुराना है।
गोपाल के गाँव में एक समय ऐसा आया कि गाँववाले गरीब हो गए और लोगों को अपने रोजगार और आजीविका के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। एक दिन, गाँव के सभी लोगों ने मिलकर एक विचार-सभा बुलाई और समझाया कि एक साथ मिलकर काम करना होगा ताकि सभी को भले ही कुछ कमाने का एक मौका मिले।
यह सुनकर गोपाल की आँखों में लालच का चमक आ गया। उसने गाँववालों से कहा, “मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए तैयार हूँ, लेकिन मुझे इतना मिलना चाहिए कि मैं अगले सभी से अमीर बन जाऊँ।”
गाँववाले ने इसे मान लिया और सभी ने मिलकर मेहनत करना शुरू किया। लेकिन गोपाल का मन तो काम करने की बजाय बस लालच में ही था। जब भी कोई अच्छा काम करता, तो उसकी मेहनत का फल उससे चुराने का दिल करता।
समय के साथ, गाँववालों ने गोपाल के असली चेहरे को देख लिया और उन्होंने इसे बहुत धोखे में पाया। उन्होंने गोपाल को गाँव से बाहर निकाला और कहा, “हमारा साथ तुझे कभी नहीं मिलेगा क्योंकि तू सिर्फ अपने लालच के लिए जीता है, और दूसरों की मेहनत का फल चुराता है।”
गोपाल ने लालच के चक्कर में सच्ची मित्रता और समाजदारी को बिना देखे ही खो दिया था। उसे अपने लालच ने गवाही दी कि लालच में डूबा व्यक्ति हमेशा हानि में ही रहता है। उसका वास्तविक दोस्त वह होता, जो उसे सही और गलत के बीच अंतर का सिखाता, ना कि लालच की दुनिया में खोने वाला।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि लालच और हमेशा अपने ही फायदे की सोच हमें गलत रास्ते पर ले जा सकती हैं। अगर हम दूसरों की मेहनत और संघर्ष को समझें और समर्थन करें, तो हम सभी एक समृद्धि भरी और सामृद्धिक जीवन जी सकते हैं।