एक छोटे से गाँव की कहानी है, जहां रहते थे सुनील और उसकी पत्नी गीता। सुनील, जो अपने अनपढ़पन पर हमेशा हंसता रहता था, एक दिन अपनी पत्नी से बोला, “तू जानती है, अनपढ़ होना भी कोई मजबूती होती है!”
गीता, जो भी हमेशा खुश रहती थी, हंसते हुए कही, “हां, मेरे बारे में तो सब कुछ तू ही जानता है!”
एक दिन सुनील ने गीता से पूछा, “तू तो बहुत अच्छी है, पर तुझे पढ़ाई का कोई शौक नहीं है?”
गीता ने हंसते हुए कहा, “सुनील, पढ़ाई में क्या मजा है? मैं तो जीवन के हर पल को हंसी में ही बिताना चाहती हूँ!”
सुनील ने उसे गौर से देखा और कहा, “तू सचमुच हंसी की दुकान है!”
गीता ने उत्तर दिया, “हंसी ही तो मेरी पढ़ाई है, और जीवन के मजे में ही सब कुछ है!”
गाँववाले हमेशा उनकी मस्ती और हंसी में शामिल होते थे, और सुनील का कहना था, “गीता के बिना गाँव में रोजगार कैसे बनता!”
इस मजेदार कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन को हंसी में जीना कितना महत्वपूर्ण है, और व्यक्ति की खुशियाँ उसकी सोच और दृष्टिकोण पर निर्भर करती हैं।”